यह कैसा समय है आया
हर तरफ़ आतंक का साया
आखिर कब तक रहेगा आतंक
इंसानियत पर होगा कलंक
कभी तो मिलेगी निजात
उजली होगी ये काली रात
कोई तो होगा ऐसा सिपाही
जो रोकेगा यह तबाही
वक्त के लिलार पर लिखेगा
पत्थरों पर भी गढेगा
अब सुरक्षित है मेरा देश
अब नही कोई क्लेश
अब हम पूरी तरह आजाद हैं
अब सभी गुलशन आबाद हैं।
- नीरज शुक्ला "नीर"
दिसंबर 02, 2008
अक्टूबर 05, 2008
सांसों का स्पंदन
ये कौन है, जो मेरे सपनों में आता है,
उठ, सुबह हुई, कह कर मुझे जगाता है,
कहीं सो न जाऊँ मैं फ़िर से, इसलिए
अलसाई भोर में वो मुझसे बतियाता है
कहता है देख मेरे उनींदे चहरे की उदासी,
निराश न हो, कभी तो आएंगे खुशी के दिन
बरसेगा झूम कर हमारी उम्मीदों का सावन
दे इस उम्मीद का खिलौना मुझे बहलाता है
पूछता है, नीर करोगे आसमान की सैर,
जो मैं कहता हूँ नही, तो रूठ जाता है
देता है दुहाई अपनी दोस्ती और प्यार
छू के सांसों का स्पंदन वो चला जाता है।
नीरज शुक्ला "नीर"
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