ये कौन है, जो मेरे सपनों में आता है,
उठ, सुबह हुई, कह कर मुझे जगाता है,
कहीं सो न जाऊँ मैं फ़िर से, इसलिए
अलसाई भोर में वो मुझसे बतियाता है
कहता है देख मेरे उनींदे चहरे की उदासी,
निराश न हो, कभी तो आएंगे खुशी के दिन
बरसेगा झूम कर हमारी उम्मीदों का सावन
दे इस उम्मीद का खिलौना मुझे बहलाता है
पूछता है, नीर करोगे आसमान की सैर,
जो मैं कहता हूँ नही, तो रूठ जाता है
देता है दुहाई अपनी दोस्ती और प्यार
छू के सांसों का स्पंदन वो चला जाता है।
नीरज शुक्ला "नीर"
neeraj ji chalo aakhir aap chaalu ho gae blog par
जवाब देंहटाएंab word varification hataa lena
deshboard
fir sandesh
fir tippaniyaaan
vahaan par word varification hai use hataa lena
बहुत सुंदर नीरज जी /बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर /जगाना ,फिर न सोजाऊँ इसका ध्यान रखना ,रूठ जाना /शब्दों का संयोजन बहुतही सुंदर बन पढा है =भावः बिभोर कर देने वाली रचना =खुश कर किया आपने =बहुत पश्ताताप हुआ आपके ब्लॉग पर आकर की पहले क्यों नहीं आया /खैर देर आयद दुरुस्त आयद
जवाब देंहटाएंneraja ji,
जवाब देंहटाएंbahoot accha kikha hai. pasanada hai. yahan se kuch samagrai dainik prasaran me prakasit kar raha hoo.
---aapka Pankaj vyas, ratlam
www.aap-hum.blogspot.com