ये कौन है, जो मेरे सपनों में आता है,
उठ, सुबह हुई, कह कर मुझे जगाता है,
कहीं सो न जाऊँ मैं फ़िर से, इसलिए
अलसाई भोर में वो मुझसे बतियाता है
कहता है देख मेरे उनींदे चहरे की उदासी,
निराश न हो, कभी तो आएंगे खुशी के दिन
बरसेगा झूम कर हमारी उम्मीदों का सावन
दे इस उम्मीद का खिलौना मुझे बहलाता है
पूछता है, नीर करोगे आसमान की सैर,
जो मैं कहता हूँ नही, तो रूठ जाता है
देता है दुहाई अपनी दोस्ती और प्यार
छू के सांसों का स्पंदन वो चला जाता है।
नीरज शुक्ला "नीर"